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शास्त्रीय अर्थों में लाल न तो समाजशास्त्री है न राजनीतिशास्त्री पर अपनी रचना और विचार दोनों स्तरों पर अपने प्रश्नों के उत्तर देने का सफल प्रयास उन्होंने किया है। वह अपने ही ढंग से सोचते हैं। अपने ही ढंग और दृष्टि से अपने समय, देश, जन, व्यक्ति, समाज, साहित्य, कला, संस्कृति के बारे में विचार करते हैं। और खास बात यह है कि इस सबका इन्हें कोई अहंकार नहीं है। इनका सबसे यही प्रश्न है कि अहं तत्व अपने जीवन, समाज और देश के संदर्भ में किस तरह सार्थकता पा सकता है ? लक्ष्मीनारायण लाल के चिंतन का मूल विषय है- वर्तमान जीवन की स्थिति और इसकी परिणति । इन्होंने स्वयं कहा है, इनका सृजन संसार गायक का संसार है। जैसे गायक का गायन प्रतिक्षण सचल रहता है, वैसे ही इनका सृजन, इनकी रचना प्रक्रिया सदा अबाध गति से चलती रहती है। अर्थात जीवन क्षणों, घटनाओं का अतिक्रमण करके इनका सृजन कर्म अपने आप में अचल रहता है। लाल के प्रसिद्ध उपन्यास “बड़ी चम्पा छोटी चम्पा”, और “मन वृन्दावन” ये दोनों कथा कृतियॉ धर्मयुग में घारावाहिक यप से प्रकाशित हुई थी। इन दोनों कथाकृतियों से मैने जो कथाकार लाल के मानस को जाना । उससे अधिकारपूर्वक मैं कह सकती हूँ कि इनके मानस का आदर्श जीवन का आदर्श है और इसीलिए वह अनिर्वचनीय है। कि जो विषयवस्तु, चरित्र वास्तविकता इनके जितनी निकट है, उतना ही इनके लिए इस प्रकार का सत्य है कि वह दूसरे किसी के लए मिथ्या नहीं हो सकती। इसी जीवन सूत्र के सहारे लाल के असंख्य पाठक और इनके नाटकों के असंख्य दर्शक ‘लाल’ को अपना ‘लाल’ मानने को सदैव आकृष्ट होते है।